वाग्भट ऋषि के 7 नियम जो लंबी और निरोग आयु के लिए विश्व प्रसिद्ध है

वाग्भट ऋषि के नियम सदियों से लोगों को निरोगी और दीर्घायु जीवन जीने के लिए प्रेरित करते आए हैं। इस लेख में, हम वाग्भट ऋषि के उन 10 महत्वपूर्ण नियमों के बारे में बात करेंगे जो आज भी स्वास्थ्य के क्षेत्र में अत्यंत प्रासंगिक हैं।

इन नियमों को अपनाकर आप अपने दैनिक जीवन में छोटे-छोटे बदलाव करके बड़ी बीमारियों से बच सकते हैं और एक स्वस्थ जीवन की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं।

वाग्भट ऋषि आयुर्वेद के महान विद्वान थे, जिन्होंने स्वास्थ्य और लंबी आयु के लिए अनमोल सिद्धांत प्रस्तुत किए हैं। उनका मानना था कि शरीर और मन की देखभाल से हम न केवल बीमारियों से दूर रह सकते हैं, बल्कि जीवन को स्वस्थ और संतुलित भी बना सकते हैं।

वाग्भट ऋषि के नियम: स्वस्थ जीवन की कुंजी

वाग्भट ऋषि के नियम आयुर्वेद के सिद्धांतों के आधार पर ऐसे नियम प्रस्तुत किए जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों को संतुलित रखते हैं। वाग्भट ऋषि का मानना था कि दिनचर्या, भोजन, नींद और मानसिक शांति, इन चार स्तंभों पर ही एक स्वस्थ जीवन का निर्माण होता है।

इन नियमों को यदि हम अपने जीवन में अपनाते हैं, तो न केवल हम बीमारियों से दूर रह सकते हैं, बल्कि एक लंबी और निरोगी आयु भी प्राप्त कर सकते हैं। उनके अनुसार, शरीर और मन का तालमेल अत्यंत आवश्यक है। और यह तभी संभव है जब हम प्रकृति के नियमों के साथ चलें।

वाग्भट ऋषि के नियम

जैसे सही समय पर भोजन करना, शुद्ध और ताजा आहार का सेवन करना, नियमित रूप से व्यायाम और योग करना, समय पर सोना और उठना, इन सभी का पालन करने से शरीर स्वस्थ रहता है। और मन शांति प्राप्त करता है। वाग्भट ऋषि के ये सरल और प्रभावी नियम आज भी आधुनिक जीवनशैली में अत्यंत प्रासंगिक हैं और स्वस्थ जीवन की कुंजी माने जाते हैं।

#1 वाग्भट ऋषि का प्रथम नियम: समय पर भोजन करना

वाग्भट ऋषि के अनुसार हमारे शरीर की पाचन प्रक्रिया सूर्य की गति पर आधारित होती है। जब सूर्य अपने चरम पर होता है, यानी दोपहर का समय, तब हमारा पाचन तंत्र सबसे अधिक सक्रिय होता है। इस समय भोजन करने से शरीर को ऊर्जा मिलती है और भोजन अच्छे से पचता है।

इसी तरह, शाम को सूर्यास्त के बाद भारी भोजन से बचना चाहिए, क्योंकि रात में पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है। समय पर भोजन करने से न केवल पाचन तंत्र बेहतर रहता है, बल्कि यह शरीर को बीमारियों से दूर रखने में भी मदद करता है।

अनियमित भोजन करने से अपच, गैस, एसिडिटी जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, जो धीरे-धीरे अन्य बीमारियों का कारण बन सकती हैं। इसलिए, वाग्भट ऋषि ने समय पर और संतुलित मात्रा में भोजन करने को स्वस्थ और दीर्घायु जीवन का आधार बताया है।

#2 वाग्भट ऋषि का दूसरा नियम: सुबह उठते ही सबसे पहले हल्का गर्म पानी पीना

वाग्भट ऋषि का दूसरा नियम का मानना था कि सुबह उठते ही सबसे पहले बिना कुल्ला(kulla) किए हल्का गर्म पानी पीना शरीर के लिए अत्यंत लाभकारी होता है। यह नियम पाचन तंत्र को बेहतर बनाता है और शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालने में मदद करता है।

वाग्भट ऋषि के नियम

सुबह एक से तीन गिलास हल्का गर्म पानी पीने से पेट साफ रहता है और पाचन क्रिया सुचारू रूप से काम करती है।

इस नियम का पालन करने से कई स्वास्थ्य समस्याओं से बचा जा सकता है जैसे –

  • पत्थरी
  • कब्ज
  • मोटापा
  • पानी हमारे शरीर के लिए एक प्राकृतिक शुद्धिकरण तंत्र का काम करता है।
  • शरीर में ऊर्जा का स्तर बना रहता है
  • यह दीर्घकालिक स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत फायदेमंद है।

#3 वाग्भट ऋषि का तीसरा नियम: शुद्ध और ताजा भोजन का सेवन करें

वाग्भट ऋषि ने कहा कि भोजन जितना ताजा और प्राकृतिक होगा, उतना ही शरीर को पोषण प्रदान करेगा और बीमारियों से बचाएगा।

बासी, डिब्बाबंद या बहुत अधिक तले-भुने भोजन से शरीर में विषाक्त तत्व बढ़ जाते हैं, जो धीरे-धीरे रोगों का कारण बन सकते हैं। ताजे और शुद्ध भोजन से शरीर को सही पोषक तत्व मिलते हैं, जो स्वस्थ और संतुलित जीवन के लिए जरूरी हैं।

वाग्भट ऋषि का मानना था कि भोजन का प्रभाव शरीर के साथ साथ मन पर भी पड़ता है। इसलिए, सात्त्विक और ताजा भोजन मानसिक शांति और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों के लिए आवश्यक है।

#4 वाग्भट ऋषि का चौथा नियम: नियमित व्यायाम और योग करें

वाग्भट ऋषि ने कहा कि शारीरिक श्रम शरीर को मजबूत और सक्रिय बनाए रखने में मदद करता है। योग और व्यायाम न केवल शरीर के अंगों को सशक्त बनाते हैं- बल्कि रक्त संचार को भी बेहतर करते हैं, जिससे शरीर में ऊर्जा का स्तर बना रहता है।

योग, विशेष रूप से, मानसिक और शारीरिक संतुलन बनाए रखने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। वाग्भट ऋषि का मानना था कि योग से शरीर में लचीलापन आता है और मन को शांति मिलती है।

नियमित रूप से हल्का व्यायाम करने से मांसपेशियों को मजबूती मिलती है और शरीर स्वस्थ रहता है। इस नियम को अपनाकर जीवन की गुणवत्ता भी बेहतर होती है।

#5 वाग्भट ऋषि का पांचवा नियम: नींद और विश्राम का सही समय चुनें

वाग्भट ऋषि के अनुसार दीर्घायु और स्वास्थ्य के लिए सही समय पर सोना और पर्याप्त विश्राम लेना जरूरी होता है। उन्होंने कहा कि रात में 10 बजे से पहले सो जाना और सुबह जल्दी उठना शरीर के प्राकृतिक चक्र के अनुरूप होता है। जिससे शरीर को सही ढंग से आराम और पुनः ऊर्जा प्राप्त होती है।

रात में अच्छी नींद लेने से शरीर की थकान दूर होती है और मस्तिष्क को भी आराम मिलता है। साथ ही मानसिक तनाव और चिंताओं में कमी आती है। नींद की कमी से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है और मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

वाग्भट ऋषि का मानना था कि शरीर को समय पर विश्राम देने से जीवनशक्ति और ऊर्जा का संचार होता है। इस नियम का पालन करके व्यक्ति मानसिक शांति और शारीरिक स्फूर्ति दोनों प्राप्त कर सकता है। जो लंबी आयु के लिए आवश्यक हैं।

#6 वाग्भट ऋषि का छंटा नियम: भोजन में संतुलन और संयम बनाए रखें

वाग्भट ऋषि के अनुसार भूख से थोड़ा कम खाना चाहिए, ताकि पाचन तंत्र पर अधिक भार न पड़े और भोजन आसानी से पच सके। अत्यधिक या असमय भोजन करने से अपच, गैस, और मोटापा जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। जो आगे चलकर गंभीर बीमारियों का कारण बनती हैं।

संतुलित मात्रा में भोजन करने से शरीर को आवश्यक पोषक तत्व मिलते हैं। वाग्भट ऋषि का मानना था कि भोजन को धीरे-धीरे चबाकर खाने से पाचन प्रक्रिया में सुधार होता है। और यह मन और शरीर दोनों के लिए लाभकारी होता है।

#7 वाग्भट ऋषि का सातवां नियम: मानसिक शांति के लिए ध्यान करें

नियमित ध्यान से मन में स्थिरता आती है। भावनाओं पर नियंत्रण बेहतर होता है और व्यक्ति अधिक केंद्रित और जागरूक बनता है। वाग्भट ऋषि का कहना था कि ध्यान मानसिक थकान को दूर करता है, साथ ही आत्मिक शांति और संतुलन की अनुभूति भी कराता है।

यह भी पढ़े- ऑफिस वस्तु शास्त्र के अनुसार नियम और सुझाव

इस नियम को अपनाने से व्यक्ति तनावमुक्त रहकर जीवन में खुशहाली और सकारात्मकता को बढ़ावा दे सकता है।

पंडित गौरव शास्त्री एक प्रतिष्ठित विद्वान और लेखक हैं, जो 108vedas.com वेबसाइट के लिए लेखन करते हैं। उन्हें वेद, पुराण, नक्षत्र और सनातन संस्कृति का गहन ज्ञान है। पंडित गौरव ने ऋषिकुल संस्कृत महाविद्यालय, गुरुग्राम से शास्त्री की उपाधि प्राप्त की है। शास्त्री जी ने अपने लेखन के माध्यम से प्राचीन भारतीय धर्मग्रंथों और ज्योतिष शास्त्र की महिमा को जनसाधारण तक पहुँचाने का कार्य करते हैं, जिससे लोगों को सनातन धर्म की गहरी समझ और उसकी महत्ता का बोध हो सके।

Leave a Comment