भद्रा वास विचार क्या है? और आपके जीवन पर भद्रा का प्रभाव, उपाय

भद्रा वास विचार का ज्योतिष शास्त्र में खास महत्व है। भद्रा को अक्सर शुभ कार्यों में वर्जित माना जाता है, क्योंकि इसे अशुभ समय कहा जाता है, जब कोई भी महत्वपूर्ण कार्य शुरू करना अनुकूल नहीं होता। लेकिन भद्रा केवल अशुभ नहीं होती, अगर सही तरीके से इसका ध्यान रखा जाए और उपाय किए जाएं, तो यह सकारात्मक परिणाम भी दे सकती है।

भद्रा वास विचार आगमन हर महीने 8 बार होता है—कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष के विभिन्न दिनों में। यह समय विशेष रूप से कार्यों में रुकावट और विघ्न उत्पन्न कर सकता है, इसलिए लोग इस दौरान शुभ कार्य करने से बचते हैं। हालाँकि, शास्त्रों के अनुसार, भद्रा का सही पूजन और उपाय करने से इसके अशुभ प्रभावों को कम किया जा सकता है और जीवन में शांति और समृद्धि लाई जा सकती है।

भद्रा वास विचार से बचने के लिए कई प्रकार के उपाय बताए गए हैं जैसे विशेष मंत्रों का जाप, पूजा-अर्चना, और भद्रा के समय कोई महत्वपूर्ण कार्य न करना। इन उपायों से भद्रा के अशुभ प्रभाव को कम किया जा सकता है और जीवन में सकारात्मक बदलाव लाए जा सकते हैं।

भद्रा वास विचार क्या है? और उसका महत्व

ज्योतिष शास्त्र में भद्रा को शनि की बहन के रूप में वर्णित किया गया है, जिसका संबंध सूर्य और छाया से बताया गया है। भद्रा का यह संबंध उसे शक्तिशाली और प्रभावशाली बनाता है, क्योंकि शनि ग्रह को न्याय और कर्म का स्वामी माना जाता है। शनि की तरह ही, भद्रा भी जीवन में कठिनाइयाँ और बाधाएँ उत्पन्न कर सकती है, विशेष रूप से शुभ कार्यों के दौरान। यही कारण है कि भद्रा वास विचार के समय में किसी भी शुभ कार्य को करने से बचने की सलाह दी जाती है।

भद्रा वास विचार

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भद्रा वास का विचार ज्योतिष में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। भद्रा को पंचांग के करणों में से एक स्थिर करण माना जाता है, जिसे विष्टि करण भी कहते हैं। यह समय विशेष रूप से अशुभ माना जाता है, खासकर जब शुभ कार्यों की बात हो। भद्रा वास में विवाह, गृह प्रवेश, नया काम शुरू करना, या किसी अन्य मांगलिक कार्य को करने से मना किया जाता है, क्योंकि इसे विघ्न और बाधाओं का समय माना गया है।

भद्रा वास विचार के दौरान कौन-कौन से कार्य वर्जित हैं?

भद्रा वास विचार के दौरान कई शुभ और महत्वपूर्ण कार्य वर्जित माने गए हैं, क्योंकि इस समय को अशुभ और बाधाओं से युक्त माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, भद्रा वास में निम्नलिखित कार्यों को करने से बचना चाहिए:

  • विवाह और विवाह संबंधी कार्य:
    • भद्रा वास विचार के दौरान शादी या उससे जुड़े किसी भी मांगलिक कार्य को वर्जित माना जाता है। यह समय शादी के लिए शुभ नहीं होता है, क्योंकि यह समय विवाद और बाधाओं को जन्म दे सकता है।
  • गृह प्रवेश (गृहप्रवेश):
    • नए घर में प्रवेश या गृहप्रवेश की पूजा भद्रा वास के दौरान नहीं की जाती। यह समय नई शुरुआत के लिए अनुकूल नहीं होता है और इसे घर के लिए अशुभ माना जाता है।
  • नया व्यापार या व्यवसाय आरंभ करना:
    • भद्रा वास विचार में किसी नए व्यापार, व्यवसाय या प्रोजेक्ट की शुरुआत को भी वर्जित माना गया है, क्योंकि इसे अवरोध और असफलता का समय कहा गया है।

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  • मुंडन संस्कार और अन्य मांगलिक कार्य:
    • मुंडन, नामकरण, अन्नप्राशन और अन्य शुभ कार्य भद्रा वास में नहीं किए जाते। इस समय कोई भी धार्मिक और सांस्कृतिक अनुष्ठान शुभ फलदायी नहीं होते।
  • यात्रा आरंभ करना
    • भद्रा वास विचार में विशेष रूप से लंबी या महत्वपूर्ण यात्रा की शुरुआत नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इस दौरान यात्राओं में विघ्न, दुर्घटना या अन्य प्रकार की परेशानियां आ सकती हैं।

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भद्रा वास के समय इन कार्यों को वर्जित माना जाता है। क्योंकि यह समय बाधाओं और अशुभ परिणामों से जुड़ा होता है। इसलिए, शुभ कार्यों को भद्रा समाप्त होने के बाद करना अधिक शुभ माना गया है।

भद्रा वास विचार का आपके जीवन पर प्रभाव

भद्रा वास विचार का आपके जीवन पर गहरा प्रभाव होता है, क्योंकि ज्योतिष शास्त्र में इसे अशुभ और बाधाओं से भरा समय माना जाता है। भद्रा वास के दौरान किए गए कार्यों में रुकावटें, असफलता या अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। यह समय जीवन में कठिनाइयाँ और तनाव ला सकता है, विशेष रूप से तब जब कोई व्यक्ति इस अवधि में शुभ कार्य, जैसे विवाह, गृह प्रवेश, या नया व्यवसाय शुरू करता है।

भद्रा वास में निर्णय लेते समय सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि इस दौरान लिए गए गलत निर्णयों का दीर्घकालिक नकारात्मक प्रभाव हो सकता है। हालांकि, यह ध्यान रखना जरूरी है कि भद्रा का प्रभाव केवल नकारात्मक नहीं होता। सही उपायों और पूजा विधियों के द्वारा इसके अशुभ प्रभाव को कम किया जा सकता है।

ज्योतिषीय उपाय, जैसे कि विशेष मंत्रों का जाप भद्रा वास के दौरान किए जा सकते हैं। ताकि इसके प्रभाव को संतुलित किया जा सके।

भद्रा वास विचार के अशुभ प्रभावों को कम करने के उपाय

भद्रा वास विचार के अशुभ प्रभावों को कम करने के लिए ज्योतिष शास्त्र में कुछ विशेष उपाय बताए गए हैं। यदि इन उपायों का सही तरीके से पालन किया जाए तो भद्रा के दौरान भी नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सकता है।

यहाँ कुछ भद्रा वास विचार के अशुभ प्रभावों को कम करने के उपाय दिए गए हैं-

1. मंत्र जाप और पूजा

भद्रा के समय में भगवान शिव, शनि देव और दुर्गा माता की पूजा करना विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है। इन देवताओं की उपासना करने से भद्रा के अशुभ प्रभाव को कम किया जा सकता है। इसके साथ ही, “ॐ नमः शिवाय” और “ॐ शं शनैश्चराय नमः” मंत्रों का जाप करने से भी शुभ फल की प्राप्ति हो सकती है।

2. भद्रा वास के समय शुभ कार्यों से बचें

सबसे महत्वपूर्ण उपाय यह है कि भद्रा वास के दौरान किसी भी शुभ कार्य को टालना चाहिए। विवाह, गृह प्रवेश, नया व्यापार, और अन्य मांगलिक कार्य इस समय न करें। यदि संभव हो, तो भद्रा समाप्त होने के बाद ही इन कार्यों को करें।

3. दान और सेवा

भद्रा वास विचार के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए गरीबों, जरूरतमंदों और ब्राह्मणों को दान देना शुभ माना जाता है। विशेष रूप से काले तिल, काले वस्त्र, या लोहा दान करने से शनि और भद्रा की अशुभता को शांत किया जा सकता है।

4. भद्रा पूजन

यदि किसी विशेष कारणवश भद्रा वास के दौरान कोई कार्य करना अनिवार्य हो, तो भद्रा का पूजन किया जा सकता है। इसके लिए भद्रा की देवी के प्रतीक स्वरूप का पूजन करके उनसे आशीर्वाद लिया जाता है, ताकि वह कार्य सफलतापूर्वक संपन्न हो सके और अशुभ प्रभाव न हो।

5. शांति पाठ और हवन

भद्रा वास के दौरान शांति पाठ और हवन कराने से भी अशुभ प्रभाव कम किए जा सकते हैं। इससे नकारात्मक ऊर्जा शांत होती है और जीवन में सकारात्मकता आती है।

भद्रा वास के दौरान पूजन और अनुष्ठान की विधि

भद्रा वास विचार के दौरान पूजन और अनुष्ठान करने से भद्रा के अशुभ प्रभावों को कम किया जा सकता है। यहां भद्रा वास के दौरान पूजन और अनुष्ठान की विधि दी गई है:

  • पूजा के लिए आवश्यक सामग्री जैसे सफेद या काले फूल, धूप, दीपक, मिठाई, फल, और जल एकत्रित करें। साथ ही, गंगाजल और कच्चा दूध भी उपयोगी होते हैं।
  • पूजा स्थल को स्वच्छ करें और वहां एक चौकी या आसन बिछाएं।
  • सबसे पहले दीपक जलाएं और उसके चारों ओर धूप दें।
  • भगवान शिव या शनि देव का ध्यान करते हुए स्वयं स्नान करें। पूजा के लिए स्वच्छ वस्त्र पहनें।
  • भगवान शिव, शनि देव, और देवी दुर्गा की प्रतिमा या चित्र को पूजा स्थान पर स्थापित करें।
  • “ॐ नमः शिवाय” और “ॐ शं शनैश्चराय नमः” मंत्र का जाप करें। इस दौरान, मन को स्थिर और शांत रखें।
  • कुछ लोग भद्रा के समय “शांति पाठ” भी करते हैं, जिससे नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव कम हो सके।
  • भगवान शिव का अभिषेक गंगाजल या कच्चे दूध से करें। इसके बाद, प्रतिमा पर चंदन, फूल, और अक्षत चढ़ाएं।
  • भगवान के सामने धूप और दीपक रखें और आरती करें।
  • मिठाई, फल और पकवान अर्पित करें। भगवान के भोग को स्वयं ग्रहण करें।
  • यदि संभव हो, तो भद्रा के दिन जरूरतमंदों को दान दें। काले तिल, काले वस्त्र, या लोहा दान करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
  • आरती: पूजन के अंत में भगवान की आरती करें और सभी उपस्थित व्यक्तियों के साथ मिलकर “जय शिव शंकर” का जयकारा लगाएं।
  • अंत में, भगवान के प्रसाद को सभी को वितरित करें और इस दौरान एक-दूसरे के लिए शुभकामनाएं दें।

इन विधियों का पालन करने से भद्रा वास के दौरान आने वाले अशुभ प्रभावों को कम किया जा सकता है।

पंडित गौरव शास्त्री एक प्रतिष्ठित विद्वान और लेखक हैं, जो 108vedas.com वेबसाइट के लिए लेखन करते हैं। उन्हें वेद, पुराण, नक्षत्र और सनातन संस्कृति का गहन ज्ञान है। पंडित गौरव ने ऋषिकुल संस्कृत महाविद्यालय, गुरुग्राम से शास्त्री की उपाधि प्राप्त की है। शास्त्री जी ने अपने लेखन के माध्यम से प्राचीन भारतीय धर्मग्रंथों और ज्योतिष शास्त्र की महिमा को जनसाधारण तक पहुँचाने का कार्य करते हैं, जिससे लोगों को सनातन धर्म की गहरी समझ और उसकी महत्ता का बोध हो सके।

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